Chipko Movement in Hindi | चिपको आन्दोलन
∗चिपको आन्दोलन∗
– Chipko Movement –
“पहले मुझे गोली मारो फिर काट लो हमारा मायका” – श्रीमती गौरा देवी.
मित्रों,
उत्तराखण्ड राज्य का चिपको आन्दोलन एक घटना मात्र नहीं है यह पर्यावरण व प्रकृति की रक्षा के लिए सतत चलने वाली प्रक्रिया है. ऐसे विस्तृत विषय के सभी पहलूओं को एक की पोस्ट में समाहित करना गागर में सागर भरने वाली बात है. मैनें तमाम रिसर्च व अनुभव को मिलाकर चिपको आन्दोलन का यह आलेख निम्न बिंदुओं में तैयार किया है :
- उत्तराखण्ड एक परिचय
- चिपको आन्दोलन का अर्थ एवं लक्ष्य
- चिपको आन्दोलन की भूमिका
- चिपको आन्दोलन एक सतत प्रक्रिया
- चिपको आन्दोलन की पृष्ठभूमि
- चिपको आन्दोलन 1974
- 26 मार्च 1974 पश्चात चिपको आन्दोलन का स्वरूप
- समाजसेवी सुन्दरलाल बहुगुणा का योगदान
- चंडी प्रसाद भट्ट – जीवन परिचय
- श्रीमती गौरा देवी – जीवन परिचय
- सुन्दरलाल बहुगुणा – जीवन परिचय
मुझे पूरा विश्वास है कि यह पोस्ट आपके लिये चिपको आन्दोलन के हर पहलू को को स्पष्ट करेगी.
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1. उत्तराखण्ड एक परिचय :
उत्तराखण्ड राज्य हिमालय का ही एक हिस्सा है. इसकी अंतर्राष्ट्रीय सीमा चीन से लगती है. पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण व कष्टदायक होता है. उत्तराखण्ड के लोगों की इस जीवन शैली ने ही उनमें संघर्ष की असीम क्षमता का निर्माण किया है. इसी के बलबूते पर यहाँ के लोगों ने अपने बुनियादी अधिकारों को लेकर अनेकानेक सफल जन आन्दोलन किये हैं. जिनमें 1921 का कुली बेगार आन्दोलन, 1930 का तिलाड़ी आन्दोलन, 1974 का चिपको आन्दोलन, 1984 का नशा नहीं रोजगार दो आन्दोलन तथा 1994 का उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दोलन विशेषरूप से उल्लेखनीय है.
2. चिपको आन्दोलन का अर्थ एवं लक्ष्य :
चिपको आन्दोलन का सांकेतिक अर्थ यही है कि पेड़ों को बचाने के लिये पेड़ों से चिपक कर जान दे देना, परन्तु पेड़ों को नहीं काटने देना है. अर्थात प्राणों की आहुति देकर भी पेड़ों की रक्षा करना है.
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3. चिपको आन्दोलन की भूमिका :
चिपको आन्दोलन की स्टोरी पर आने से पहले इसकी भूमिका को समझना और जनना जरुरी है. आज हम चिपको आन्दोलन की SAHISMAYBLOG पर जानकारी शेयर करने से पहले इसकी भूमिका के बारे में चर्चा कर लें. मैं एक वन अधिकारी होने के कारण इस आन्दोलन की स्टेज(स्थिति) क्यों आयी समझ सकता हूँ. उत्तराखण्ड राज्य के तीन जिलों उत्तरकाशी, चमोली व पित्थोरागढ़ की सीमा चीन से लगती है. चमोली तथा उसके आस पास के क्षेत्रों के लोगों की रोजी-रोटी के लिये व्यवसाय मवेशी पालन तथा लघु वन उपज – जड़ी-बूटी, गोंद, शहद, चारे के लिये घास फूस, कृषि सम्बन्धी छोटे-मोटे औजार बनाना आदि आदि था. 1962 तक तिब्बत व चीन के लोगों साथ यहाँ के निवासी ऊन तथा कुछ हथकरघा उद्योग की वस्तुओं इत्यादि का व्यापर करते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद परिस्थितियों में एकदम बदलाव आ गया. पहला बदलाव तो यह आया कि यहाँ लोगों का तिब्बत व चीन साथ व्यापर खत्म हो गया. इसके कारण यहाँ लोगों की आजीविका पूर्णतया वनों पर निर्भर हो गयी. दूसरा बदलाव यह आया कि सरकार को भारत चीन सीमा की सुरक्षा के लिये मार्गों का निर्माण करना पड़ा. इससे हिमालय में खड़ी अथाह वन सम्पदा सरकार, ठेकेदारों, माफियाओं की नजर में तथा पहुँच में आ गयी. हिमालय में पेड़ों की ठेकेदारी प्रथा (contractor system) से अंधाधुंध कटाई के साथ-साथ असुरक्षित खनन, सड़क निर्माण, जल विद्युत परियोजनायें व पर्यटन सहित अन्य विकास कार्यों से वनों का विनाश होना शरू हो गया. इतने असुरक्षित विकास कार्यों व वनों की अंधाधुंध कटाई को हिमालय झेल नहीं पाया और इन सबके परिणाम स्वरूप सन 1970 में ऐसी प्रलयंकारी बाढ आयी थी जैसी पिछले वर्ष 2013 में आयी. यह महाविनाश प्राकृतिक नहीं था. यह महाविनाश मानव निर्मित (Manmade Disaster) था. समस्त असुरक्षित विकास कार्यों व वनों की अंधाधुंध कटाई ने भूस्खलन व बाढ़ों का मार्ग प्रशस्त किया. यहाँ के निवासियों आजीविका तो दूर जीना मुश्किल हो गया था. मैं समझता हूँ, यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते चिपको आन्दोलन होने की स्टेज आ चुकी थी.
4. चिपको आन्दोलन एक सतत प्रक्रिया :
चिपको आन्दोलन की एक समसामयिक आन्दोलन तक ही सीमितता नहीं है, यह एक सतत प्रक्रिया है. मित्रों, 2013 में केदानाथ, बद्रीनाथ व उत्तराखण्ड राज्य के अन्य हिस्सों में वर्षा से हुए महाविनाश के हम सब साक्षी हैं. इस महाविनाश का मुख्य कारण जैसा कि पहले वर्णित किया किया गया है कि हिमालय में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई तथा असुरक्षित खनन, सड़क निर्माण, जल विद्युत परियोजनायें व पर्यटन सहित अन्य विकास कार्यों से वनों का विनाश है. इतने असुरक्षित विकास को हिमालय झेल नहीं पाता और हमको ये विनाशलीलाएँ देखनी पड़ती है. कमोबेस इन्ही कारणों से यू.पी., बिहार व उत्तर पूर्वी राज्यों में हर साल बाढ़ों के कारण विनाश होता रहता है. दोस्तों, प्रकृति के प्रति असंवेदनशील घोटालेबाजों को घूस खाने, माफियाओं को मुनाफा कमाने, तथाकथित पर्दाफाशों को घोटाले उजागर कर पब्लिसिटी पाने तथा मीडिया को टी.आर.पी. बढ़ाने तक ही मतलब है. प्रकृति के विनाश की ओर किसी का ध्यान नहीं है. चिपको आन्दोलन एक सतत प्रक्रिया है. इसकी सार्थकता हमेशा बनी रहेगी. प्रकृति के संतुलन को आप जैसे प्रबुद्धजन व युवाशक्ति ही बचा सकती है. मैं यहाँ इस तथ्य को भी रेखांकित करना चाहूँगा कि पर्यावरण की रक्षा के लिये हुए आंदोलनों में मातृशक्ति का त्याग व योगदान उल्लेखनीय रहा है. मित्रों, मेरे द्वारा लिखी गयी पर्यावरण से संबंधित समस्त पोस्टस् के प्रति आप प्रबुद्ध जनों का उत्साह देखकर बहुत ही सुखद अनुभूति हुई. आपने पर्यावरण के प्रति जागरुकता व संवेदनशीलता की महती आवश्यकता को समझा है. इसीसे उत्साहित होकर मैंने यह पोस्ट तैयार की है. मैं इसको खेजड़ली बलिदान के बाद का यानि दूसरा चिपको आन्दोलन मानता हूँ. मेरी आपसे गुजारिश है कि इसी पोस्ट के नीचे दिये कमेन्ट बॉक्स में अपना विचार जरुर व्यक्त करें.
∗चिपको आन्दोलन∗
तीस साल बाद 2004 में गौरादेवी के जिवित साथी
चिपको आन्दोलन 1974 कह देने से इसकी स्टोरी श्रीमती गौरा देवी तक ही सिमित रह जाती है. श्री चंडी प्रसाद भट्ट व सुन्दरलाल बहुगुणा तथा अन्य लोगों का योगदान भी अमूल्य है. इस आन्दोलन के मुख्य संस्थापक श्री चंडी प्रसाद भट्ट हैं. इस आन्दोलन को श्रीमती गौरादेवी ने अमलीजामा दिया. चिपको आन्दोलन क्रियान्वित गौरादेवी की घटना से ही हुआ था. इसीलिये श्रीमती गौरादेवी को इस आन्दोलन की जननी तथा सूत्रधार कहा जाता है. इस आन्दोलन को विस्तार श्री सुन्दरलाल बहुगुणा ने दिया.
5. चिपको आन्दोलन की पृष्ठभूमि :
चंडी प्रसाद भट्ट का जन्म 23 जून 1934 को गोपेश्वर गांव (जिला चमौली) उत्तराखंड के एक गरीब परिवार में में हुआ था. इन्होंने चमौली से हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त की. पर्वतीय क्षेत्र में रोजगार न मिलने के कारण इनको मैदानी क्षेत्र में ऋषिकेश आकर एक बस यूनियन के ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करनी पड़ी. वहाँ भी इन्होंने बाहर की सवारियों से ज्यादा किराया वसूलने के वरोध सघर्ष शुरु कर दिया था.
1956 में सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण पीपलकोटी आये तब चंडी प्रसाद भट्ट ने उनका भाषण सुना तथा उनसे भेंट की. उसके बाद वे गांधीवादी समाजिक कार्यकर्ता बन गये. उन्होने सन् 1964 में गोपेश्वर में ‘दशोली ग्राम स्वराज्य संघ’ (दशोली गोपेश्वर के आस-पास के क्षेत्र की प्रशासनिक इकाई का नाम है) की स्थापना की, जो कालान्तर में चिपको आंदोलन की मातृ-संस्था बनी. इस संस्था ने स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों से रोजगार सृजित करने का काम शुरु किया. इसके साथ ही चंडी प्रसाद भट्ट, जयप्रकाश नारायण तथा विनोबा भावे को आदर्श बनाकर अपने क्षेत्र में श्रम की प्रतिष्ठा सामाजिक समरसता, नशाबंदी और महिलाओं-दलितों को सशक्तीकरण के द्वारा आगे बढ़ाने के काम में जुट गये.
स्थानीय रोजगार के मुख्य संसाधन वन ही थे. सोसायटी को छोटे फार्म टूल बनाने के लिये पेड़ों की जरुरत होती तब ये वन विभाग से मागते थे. परन्तु गलत सरकारी नीतियों के चलते वहाँ स्थानीय लोगों की मांग की पूर्ति न कर पेड़ साइमन जैसी बड़ी मैदानी कम्पनियों को ठेके पर दे देते थे. चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में लगातार सरकारी नीतियों विरोध में लगातार संघर्ष चल रहे थे. 1970 में आयी प्रलयंकारी बाढ से उत्पन्न हुई भयावह परस्थितियों ने गलत सरकारी नीतियों के कारण हुए समस्त असुरक्षित विकास कार्यों व वनों की अंधाधुंध कटाई को उजागर कर दिया. उसके बाद चंडी प्रसाद भट्ट वनों का विनाश रोकने के लिए ग्रामवासियों को संगठित कर 1973 से चिपको आंदोलन आरंभ कर वनों का कटान रुकवाया. परन्तु चिपको आन्दोलन को वास्तविक सफलता व गति श्रीमती गौरादेवी की घटना के बाद मिली.
चिपको आन्दोलन की जननी श्रीमती गौरा देवी
6. चिपको आन्दोलन 1974 :
अब हम बात करने जा रहे हैं, 1974 में शुरु हुये विश्व विख्यात चिपको आन्दोलन की जननी, प्रणेता श्रीमती गौरा देवी जी की, जो चिपको वूमन के नाम से मशहूर हैं. 1925 में चमोली जिले के लाता गांव के एक मरछिया जनजाति परिवार में श्री नारायण सिंह के घर में इनका जन्म हुआ था. मात्र 12 साल की उम्र में इनका विवाह रैंणी गांव के मेहरबान सिंह से हुआ, रैंणी भोटिया (तोलछा) का स्थायी आवासीय गांव था, ये लोग अपनी गुजर-बसर के लिये पशुपालन, ऊनी कारोबार और खेती-बाड़ी किया करते थे. 22 वर्ष आयु में गौरा देवी पति का देहान्त हो गया था. तब उनका एकमात्र पुत्र चन्द्र सिंह मात्र ढाई साल का ही था. गौरा देवी ने ससुराल में रहकर छोटे बच्चे की परवरिश व वृद्ध सास-ससुर की सेवा के साथ-साथ खेती-बाड़ी व कारोबार को संभालने में अनेकानेक कष्टों का सामना करना पड़ा. उन्होंने अपने पुत्र को स्वालम्बी बनाया. उन दिनों भारत-तिब्बत व्यापार हुआ करता था, गौरा देवी ने उसके जरिये भी अपनी आजीविका का निर्वाह किया. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह व्यापार बन्द हो गया तो चन्द्र सिंह ने ठेकेदारी, ऊन के धंधे तथा मजदूरी से आजीविका चलाई, इससे गौरा देवी आश्वस्त हुई और खाली समय में वह गांव के लोगों के सुख-दुःख में सहभागी होने लगीं. इसी बीच अलकनन्दा में 1970 में प्रलंयकारी बाढ़ आई, जिससे यहां के लोगों में बाढ़ के कारण और उसके उपाय के प्रति जागरुकता आयी.
इस कार्य के लिये प्रख्यात पर्यावरणविद श्री चण्डी प्रसाद भट्ट ने पहल की. इसी चेतना का प्रतिफल था, हर गांव में महिला मंगल दलों की स्थापना की. 1972 में गौरा देवी जी को रैंणी गांव की महिला मंगल दल का अध्यक्ष चुना गया. इसी दौरान वह चण्डी प्रसाद भट्ट, गोबिन्द सिंह रावत, वासवानन्द नौटियाल और हयात सिंह जैसे समाजिक कार्यकर्ताओं के सम्पर्क में आई. जनवरी 1974 में रैंणी गांव के 2451 पेड़ों का छपान हुआ. 23 मार्च को रैंणी गांव में पेड़ों का कटान किये जाने के विरोध में गोपेश्वर में एक रैली का आयोजन हुआ, जिसमें गौरा देवी ने महिलाओं का नेतृत्व किया. प्रशासन ने सड़क निर्माण के दौरान हुई क्षति का मुआवजा देने की तिथि 26 मार्च तय की गई, जिसे लेने के लिये सभी गाँव के सभी मर्दों को चमोली जाना था.
इसी बीच वन विभाग ने सुनियोजित चाल के तहत जंगल काटने वाले ठेकेदारों को निर्देशित कर दिया कि 26 मार्च को वे अपने मजदूरों को लाकर चुपचाप रैंणी जंगल के पेड़ों को काट कर ले जावें. गांव के सभी मर्द चमोली में रहेंगे उसी दिन समाजिक कायकर्ताओं को वार्ता के बहाने गोपेश्वर बुला लिया जायेगा. इसी योजना पर अमल करते हुये ठेकेदार श्रमिकों को लेकर रैंणी की ओर चल पड़े. वे रैंणी से पहले ही उतर कर ऋषिगंगा के किनारे रागा होते हुये रैंणी के देवदार के जंगलों को काटने के लिये चल पड़े. इस हलचल को एक छोटी लड़की ने देख लिया. उसने तुरंत इससे गौरा देवी को अवगत कराया. पारिवारिक संकटों को झुंझने वाली गौरा देवी पर आज एक सामूहिक उत्तरदायित्व आ पड़ा. वह गांव में उपस्थित 21 महिलाओं और कुछ बच्चों को लेकर वह जंगल की ओर चल पड़ी. इनमें बती देवी, महादेवी, भूसी देवी, नृत्यी देवी, लीलामती, उमा देवी, हरकी देवी, बाली देवी, पासा देवी, रुक्का देवी, रुपसा देवी, तिलाड़ी देवी, इन्द्रा देवी शामिल थीं. इनका नेतृत्व कर रही थी, गौरा देवी, इन्होंने खाना बना रहे मजदूरो से कहा ”भाइयो, यह जंगल हमारा मायका है, इससे हमें जड़ी-बूटी, फल- सब्जी और लकड़ी मिलती है, जंगल काटोगे तो बाढ़ आयेगी, हमारे बगड़ बह जायेंगे, आप लोग खाना खा लो और फिर हमारे साथ चलो, जब हमारे मर्द आ जायें तब फैसला कर लेंगें.” ठेकेदार और जंगलात के आदमी उन्हें डराने-धमकाने लगे, उन्हें बाधा डालने जुर्म में गिरफ्तार करने की भी धमकी दी, लेकिन यह महिलायें न डरी न झुकी. ठेकेदार ने बन्दूक निकालकर इन्हें धमकाया तो गौरा देवी ने अपनी छाती तानकर गरजते हुये कहा “पहले मुझे गोली मारो फिर काट लो हमारा मायका” इस पर मजदूर सहम गये. गौरा देवी के अदम्य साहस से इन महिलाओं में भी शक्ति का संचार हुआ और महिलायें पेड़ों के चिपक गई और कहा कि हमारे साथ इन पेड़ों को भी काट लो. ऋषिगंगा के तट पर नाले पर बना सीमेण्ट का एक पुल भी महिलाओं ने तोड़ डाला, जंगल के सभी मार्गों पर महिलायें तैतात हो गई. ठेकेदार के आदमियों ने गौरा देवी को डराने-धमकाने का प्रयास किया, यहां तक कि उनके ऊपर थूक तक दिया गया. लेकिन गौरा देवी ने नियंत्रण नहीं खोया और पूरी इच्छा शक्ति के साथ पूरी रात अपना विरोध जारी रखा. इससे मजदूर और ठेकेदार को आखिर हत्थियार डालने पड़े. इन महिलाओं की जीत हुई और जंगल बच गया.
इस घटना की चर्चा प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी. और इस आन्दोलन ने सरकार के साथ-साथ वन प्रेमियों और वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर खींचा. सरकार को इस हेतु डा० वीरेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया. जांच के बाद पाया गया कि रैंणी के जंगल के साथ ही अलकनन्दा में बांई ओर मिलने वाली समस्त नदियों ऋषि गंगा, पाताल गंगा, गरुड़ गंगा, विरही और नन्दाकिनी के जल ग्रहण क्षेत्रों और कुवारी पर्वत के जंगलों की सुरक्षा पर्यावरणीय दृष्टि से बहुत आवश्यक है.
इस प्रकार से पर्यावरण के प्रति अतुलनीय प्रेम का प्रदर्शन करने और उसकी रक्षा के लिये अपनी जान तक की बाजी लगाने वाली गौरा देवी ने जो अनुकरणीय कार्य किया, उसने उन्हें रैंणी गांव की गौरा देवी से चिपको वूमेन ऑफ़ इण्डिया बना दिया.
श्रीमती गौरा देवी, पेड़ों के कटान को रोकने के साथ ही वृक्षारोपण के कार्यों में भी संलग्न रहीं, उन्होंने ऐसे कई कार्यक्रमों का नेतृत्व किया. आकाशवाणी नजीबाबाद के ग्रामीण कार्यक्रमों की सलाहकार समिति की भी वह सदस्य रही. सीमित ग्रामीण दायरे में जीवन यापन करने के बावजूद भी वह दूर की समझ रखती थीं. उनके विचार जनहितकारी हैं, जिसमें पर्यावरण की रक्षा का भाव निहित था, नारी उत्थान और सामाजिक जागरण के प्रति उनकी विशेष रुचि थी. श्रीमती गौरा देवी जंगलों से अपना रिश्ता बताते हुये कहतीं थीं कि “जंगल हमारे मैत (मायका) हैं” उन्हें दशौली ग्राम स्वराज्य मण्डल की तीस महिला मंगल दल की अध्यक्षाओं के साथ भारत सरकार ने वृक्षों की रक्षा के लिये 1986 में प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार प्रदान किया गया. जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी द्वारा प्रदान किया गया था.
गौरा देवी ने ही अपने अदम्य साहस और दूरदर्शिता से चिपको आन्दोलन में प्राण फूंके. इसीलिये गौरा देवी को चिपको आन्दोलन की सूत्रधार व जननी कहा जाता है. इस महान व्यक्तित्व का निधन 4 जुलाई, 1991 को हुआ. यद्यपि आज गौरा देवी इस संसार में नहीं है, लेकिन उत्तराखण्ड ही हर महिला में वह अपने विचारों से विद्यमान है. हिमपुत्री की वनों की रक्षा की ललकार ने यह साबित कर दिया कि संगठित होकर महिलायें किसी भी कार्य को करने में सक्षम हो सकती है। जिसका ज्वलंत उदाहरण, चिपको आन्दोलन को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त होना है.
7. 26 मार्च 1974 पश्चात चिपको आन्दोलन का स्वरूप :
चण्डी प्रसाद भट्ट ने रोजगार को लेकर अपने बुनियादी हक हकूकों के लिये 1964 में गांधीवादी तरीक़े से संघर्ष शुरु किया था. 1970 की बाढ़ के बाद यह संघर्ष अपने हक हकूकों के साथ-साथ स्थानीय सुरक्षा हेतु चिपको आन्दोलन में परिवर्तित हो गया था. 26 मार्च 1974 पश्चात चिपको आन्दोलन स्थानीय नहीं रह गया बल्कि एक ऐसी मुहिम में परिवर्तित हो गया जिसमें पूरे विश्व कल्याण की भावना निहित थी.
8. समाजसेवी सुन्दरलाल बहुगुणा का योगदान :
26 मार्च 1974 के गौरा देवी के साहसिक कदम ने सभी पर्यावरणविदों को आपस में जोड़ने कार्य भी किया. टिहरी गढवाल के समाजसेवी सुन्दरलाल बहुगुणा भी इस मुहीम में जुड़ गये. उन्होंने चिपको आंदोलन को विस्तार दिया और इस आन्दोलन को जल, जमीन व जंगल को जीवन की सुरक्षा से जोड़ दिया. और ‘चिपको आन्दोलन’ का घोषवाक्य बना –
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार ।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार ।।
सुन्दरलाल बहुगुणा ने चिपको आन्दोलन से गाँव-गाँव जागरुकता लाने के लिये 1981 से 1983 तक लगभग 5000 कि.मी. लम्बी ट्रांस-हिमालय पदयात्रा की. ‘चिपको आन्दोलन’ का ही परिणाम था जो 1980 में वन संरक्षण अधिनियम बना और केंद्र सरकार को पर्यावरण मंत्रालय का गठन करना पड़ा. मित्रों, ‘चिपको आन्दोलन’ को कई सफलताएँ मिली. परन्तु प्रकृति का संतुलन बनाये रखने के लिये वन एवं वन्य जीवों का संरक्ष्ण एक सतत प्रक्रिया है. अत: ‘चिपको आन्दोलन’ की जरुरत हमेशा रहेगी. और यह सर्वथा समीचीन है.
9. चंडी प्रसाद भट्ट – जीवन परिचय
चंडी प्रसाद भट्ट /Chandi Prasad Bhatt
जीवन परिचय | |
नाम | Chandi Prasad Bhatt / चंडी प्रसाद भट्ट |
जन्म तिथि | 23 जून 1934. |
जन्म स्थान | गोपेश्वर गांव (जिला चमौली) उत्तराखंड. |
माता-पिता | महेशी देवी – गंगाराम भट्ट |
निवास | गोपेश्वर गांव (जिला चमौली) उत्तराखंड, India. |
शिक्षा | हाईस्कूल-चमौली |
महत्वपूर्ण मोड़ | 1956 में पीपलकोटी में जयप्रकाश नारायण से भेंट. |
कार्यक्षेत्र | समाज सुधार |
उपलब्धियां | सहकारिता आधारित आन्दोलन के प्रारम्भकर्ता. दशौली ग्राम स्वराज्य मण्डल के संस्थापक. ‘चिपको आन्दोलन’ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यकर्ता.1982 में रमन मैग्ससे पुरस्कार,1983 में अरकांसस (अमेरिका) अरकांसस ट्रैवलर्स सम्मान,1983 में लिटिल रॉक के मेयर द्वारा सम्मानिक नागरिक सम्मान,1986 में भारत के माननीय राष्ट्रपति महोदय द्वारा पद्मश्री सम्मान,1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा ग्लोबल 500 सम्मान, 1997 में कैलिफोर्निया (अमेरिका) में प्रवासी भारतीयों द्वारा इंडियन फॉर कलेक्टिव एक्शन सम्मान, 2005 में पद्म भूषण सम्मान, 2008 में डॉक्टर ऑफ साईंस (मानद) उपाधि, गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर, 2010 रियल हिरोज लाईफटाईम एचीवमेंट अवार्ड सी.एन.एन. आई.बी.एन, -18 नेटवर्क तथा रिलाईंस इंडस्ट्रीज द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार, 2013 का गाँधी शांति पुरस्कार(Gandhi Peace Prize) प्राप्त हुए हैं. |
युवाओं को संदेश | अन्याय का प्रतिकार करें. अपने परिवेश से कभी न कटें. |
10. श्रीमती गौरा देवी – जीवन परिचय
श्रीमती गौरा देवी/ Gauradevi
जीवन परिचय | |
नाम | Gauradevi / श्रीमती गौरा देवी |
जन्म तिथि | 1925 (दिनांक ज्ञात नहीं). |
जन्म स्थान | लाता गांव के एक मरछिया परिवार में. |
मृत्यु | 4 जुलाई, 1991 (aged 66) |
मृत्यु स्थल | रैंणी गांव. |
निवास | रैंणी गांव, Reni village, Hemwalghati, in Chamoli district, Uttarakhand, India. |
कार्यक्षेत्र | समाज सुधार |
उपलब्धियां | चिपको आन्दोलन की सूत्रधार. |
11. सुन्दरलाल बहुगुणा – जीवन परिचय
सुन्दरलाल बहुगुणा/Sunderlal Bahuguna
जीवन परिचय | |
नाम | Sunderlal Bahuguna / सुन्दरलाल बहुगुणा |
जन्म तिथि | 9 जनवरी 1927. |
जन्म स्थान | मरोड़ा, सिलयारा,टिहरी गढवाल, उत्तराखंड. |
माता-पिता | पूर्णा देवी – अम्बादत्त बहुगुणा. |
शिक्षा | बी.ए. – सनातन धर्म कॉलेज लाहौर. एम.ए. – अपूर्ण काशी विद्यापीठ. |
महत्वपूर्ण मोड़ | तेरह वर्ष की उम्र में श्रीदेव सुमन से मिलने पर स्वतंत्रता आन्दोलन का सिपाही बन गया. |
निवास | उत्तराखंड, India. |
कार्यक्षेत्र | समाज सुधार |
उपलब्धियां | सुन्दरलाल बहुगुणा को सन 1981 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया जिसे उन्होंने यह कह कर स्वीकार नहीं किया कि “जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ।“1985 में जमनालाल बजाज पुरस्कार।रचनात्मक कार्य के लिए सन 1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार,1987 में राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (चिपको आंदोलन),1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार 1987 में सरस्वती सम्मान 1989 सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि आईआईटी रुड़की द्वारा 1998 में पहल सम्मान 1999 में गाँधी सेवा सम्मान 2000 में सांसदों के फोरम द्वारा सत्यपाल मित्तल एवार्ड सन 2001 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। |
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Mughe chepko andolan ke bare me sahe jaankare nahe the padhane ke baad mai pure tarah se es aandolan ko samgh paya
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Thanks Moksha ji
नहीं पाता और हमको ये विनाशलीलाएँ देखनी पड़ती है. कमोबेस इन्ही कारणों से यू.पी., बिहार व उत्तर पूर्वी राज्यों में हर साल बाढ़ों के कारण विनाश होता रहता है. दोस्तों, प्रकृति के प्रति असंवेदनशील घोटालेबाजों को घूस खाने, माफियाओं को मुनाफा कमाने, तथाकथित पर्दाफाशों को घोटाले उजागर कर पब्लिसिटी पाने तथा मीडिया को टी.आर.पी. बढ़ाने तक ही मतलब है. प्रकृति के विनाश की ओर किसी का ध्यान नहीं है. चिपको आन्दोलन एक सतत प्रक्रिया है. इसकी सार्थकता हमेशा बनी रहेगी. प्रकृति के संतुलन को आप जैसे प्रबुद्धजन व युवाशक्ति ही बचा सकती है. मैं यहाँ इस तथ्य को भी रेखांकित करना चाहूँगा कि पर्यावरण की रक्षा के लिये हुए आंदोलनों में मातृशक्ति का त्याग व योगदान उल्लेखनीय रहा है. मित्रों, मेरे द्वारा लिखी गयी पर्यावरण से संबंधित समस्त पोस्टस् के प्रति आप प्रबुद्ध जनों का उत्साह देखकर बहुत ही सुखद अनुभूति हुई. आपने पर्यावरण के प्रति जागरुकता व संवेदनशीलता की महती आवश्यकता को समझा है. इसीसे उत्साहित होकर मैंने यह पोस्ट तैयार की है. मैं इसको खेजड़ली बलिदान के बाद का यानि दूसरा चिपको आन्दोलन मानता हूँ. मेरी आपसे गुजारिश है कि इसी पोस्ट के नीचे दिये कमेन्ट बॉक्स में अपना विचार जरुर व्यक्त करें.
धन्यवाद somya जी आप मेरे blog की posts पढ़ना. जहाँ जहाँ मौंक मिला मैंने मातृशक्ति को उभारने की पूरी कोशिश की है. और इस पोस्ट में भी गोरदेवी को चिपको आन्दोलन की जननी बताकर उनका हक दिया है.
Super and NYC so good
Thanks shashanl ji
FIRST I DON’T NO ABOUT THE CHIPKO MOVEMENT BUT BY THE READING OF THE MOVEMENT I UNDERSTAND EVERY THING .
THANK YOU SO MUCH….
Thanks Adarsh ji
Superb
Thanks Sushma Negi ji
Thanks
Thanks Sengar ji
I inspire
Thanks U S Ssengar ji
Chipko movement is realy……..
Thanks Uppasnasingh ji
Chipko movement is realy……..
Thanks
Thanks Upasna ji
it is very intrested
Thanks dhiraj kumar bhatt
Chipko aandoln ke kafi inspire huaa hu mujhe bhut jada kuchh sukhne ko mila ki apne enviornment ka kesa save rkhna hai esaka v knowledge mila
Aapka bhut bhut dhnybad etna achhe se smjhane ke liy
Thanks Chandan ji
Chipko aandoln se kafi inspire huaa hu main ,mujhe bhut jada kuchh sukhne ko mila ki apne enviornment ka kese save rkhna hai esaka v knowledge mila
Aapka bhut bhut dhnybad etna achhe se smjhane ke liy
Thanks Chandan Shri
चिपको आन्दोलन के लिए सवर्प्रथम श्रेय गैारा देवी जी को दिया जाना चाहिए न कि बहुगुणा साहब को॥
Thanks Rohit ji
mai chipko movement ko lekr clear nai thi ab kafi had tak mujhe samjh me aaya hai
Thanks Seema Ji
Nice its really important for me
Thank you
Thanks Kuberji
Thanks Jakari ji
I really like your writing style, superb information, appreciate it for posting :D. “You can complain because roses have thorns, or you can rejoice because thorns have roses.” by Ziggy.
Thanks Damien Ewings
It is reality that today we are facing environmental issues. To stop cutting of trees we should think like gaura devi.,and Sunderlal bahuguna ji.
Thanks Thakur ji
Good
Thanks Yash ji
Very nice post thanks
Thanks Honey ji
Somya comment is very good about media
Thanks Honey choudhary
Where are you from mahesh
Reply me mahesh
aap ne chipko aandolan ko bahut hi badiya tarike se samzaya h or post me positivity banaye rakhi h kiske liye me aap ko bahut bahut dhanywad kahta hu .
Thanks Suraj ji